हिंदी कहानियां - भाग 205
नए साल में
नए साल में आर्ची धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी। वह खुद को बहुत बड़ी समझने लगी थी, क्योंकि उसे मौसी के कपड़े आने लगे थे। मां के बड़े-बड़े कपड़े उसे अच्छे लगते। मां का मेकअप का सामान भी उसे बहुत पसंद आता, लेकिन हकीकत में थी तो वह छोटी ही। बड़े और छोटे के बीच में झूलती आर्ची बहुत कुछ जल्दी-जल्दी करना चाहती थी। लेकिन जैसे ही उसे कोई घर का काम कहा जाता, तो वह पैर पटकने लग जाती। बार-बार कहने के बाद भी वह काम करने के लिए नहीं उठती थी। बस, वह जल्दी से बड़ी हो जाना चाहती थी। वह बड़ों की हर बात तो बहुत ही ध्यान से सुनती। आर्ची की अच्छी बात यह थी कि पढ़ाई हो या स्कूल में कोई भी प्रतियोगिता, वह फर्स्ट ही आती। वह स्कूल की सभी टीचर की आंखों का तारा तो बन ही चुकी थी। टीचर उसे हनुमान बुलाने लगी थीं। जब भी कोई ऐसा मौका होता, जहां स्कूल को कहीं अपना प्रतिनिधित्व करना होता, सभी आर्ची को ही आगे कर देते। आर्ची को धीरे-धीरे यह लगने लगा कि वह खास है। उससे अच्छा कोई नहीं, तभी तो सारी टीचर हर काम के लिए उसे ही बुलाती हैं। आर्ची धीरे-धीरे स्कूल की ‘स्टार स्टूडेंट’ बन गई। स्टेज पर खड़ी होकर आर्ची बड़े-बड़े सेलिब्रिटी की नकल करते हुए अपनी स्पीच पढ़ती। वह स्कूल के अवार्ड फंक्शन में भी वैसे ही आगे रहती। घंटों तक मंच संचालन करना मानो अब उसके बाएं हाथ का खेल हो गया था। स्कूल का हर बच्चा उसे न केवल पहचानता था, बल्कि किसी भी परेशानी में उससे मदद भी मांगा करता था। आर्ची का किशोर मन इन सब बातों को देखकर बहकने लगा था। वह समझने लगी थी कि वह तो स्टार है। स्कूल की स्टार बच्ची घर में बहुत ही शैतान थी। वह कभी भी मां की बात नहीं मानती थी। घर में अगर कोई उससे पीने का पानी मांग ले, तो ऐसे मुंह बनाती, जैसे बहुत मुश्किल काम कह दिया हो। मां के बार-बार कहने पर भी वह बिस्तर से उठकर पानी नहीं पकड़ाती। दूसरे कमरे में अपने दोस्त टफी के साथ जाकर बैठ जाती। मां हारकर खुद ही पानी पी लेतीं। धीरे-धीरे आर्ची बदलती जा रही थी। उसकी ये आदतें घर वालों को खटक रही थीं। स्कूल की एक ‘स्टार स्टूडेंट’ घर की एक जिदी और बददिमाग लड़की बनती जा रही थी। घर वाले समझ नहीं पा रहे थे कि उसे कैसे जीवन की सही राह दिखाई जाए। नया साल आने वाला था। घर में नए साल के लिए खास तैयारियां की जाती थीं, क्योंकि नए वर्ष के पहले हफ्ते में ही उसका जन्मदिन आता था। हर बार मां-पापा उसे कई-कई सरप्राइज दिया करते थे, लेकिन आर्ची की आदतें देखकर, वे इस बात को लेकर काफी परेशान रहने लगे थे। एक दिन उनके घर मौसी आईं। उसने मौसी से दूसरे कमरे से कुछ लाने को कहा। मौसी ने भी उसी अंदाज में पैर पटकते हुए वैसी ही हरकत की, जैसी अकसर आर्ची किया करती थी। मौसी अब बार-बार पानी या किचन से कुछ लाने के लिए कहती। आर्ची जैसे ही पैर पटकती, मौसी का मुसकराता चेहरा उसे याद दिला देता कि अगली बार जब भी वह मां या मौसी से कोई काम कहेगी, उसे वैसा ही जवाब मिलेगा। वह धीरे-धीरे मौसी से चिढ़ने लगी, लेकिन उसे यह एहसास भी था कि उसकी मौसी उसे बहुत प्यार करती हैं, लेकिन बस उसकी कुछ आदतें, जो घर में भी स्टार बनने से रोक रही हैं, उन्हीं को सही करना चाहती हैं। एक दिन मौसी ने उससे कहा कि नया साल आने वाला है। नए साल में वह आर्ची को बिल्कुल तंग नहीं करेंगी और न ही उसे उसकी गलतियां ही बताएंगी। वह रोज समय पर सोएंगी और सुबह जल्दी उठकर सैर करने भी जाएंगी। मौसी ने यह कहने के बाद धीरे-धीरे आर्ची को कुछ भी कहना बंद कर दिया। वह सुबह जल्दी उठतीं सैर के लिए जातीं। हर काम आर्ची के उठने से पहले कर देतीं। आर्ची की मां संध्या ने भी अब उसे कुछ भी कहना बंद कर दिया था। आर्ची भले ही खुद को बड़ा समझने लगी थी, लेकिन उसका बाल मन मां और मौसी के बदले व्यवहार को समझ नहीं पा रहा था कि वह क्या करे कि सब कुछ पहले जैसा हो जाए। फिर उसे मौसी की नए साल के लिए ली गई प्रतिज्ञा याद आ गई। अचानक एक दिन मौसी ऑफिस से आईं, तो देखा आर्ची पानी का गिलास और बिस्कुट के साथ मुसकराती हुई खड़ी है। नया साल और नई प्रतिज्ञा काम कर गई। आर्ची घर में भी सबके लिए स्टार बनने के लिए अब तैयार थी। उसने साबित कर दिया कि वह स्कूल में ही नहीं, घर वालों की भी लाडली है।